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माँ शाकुम्भरी विश्वविद्यालय, सहारनपुर कुलगीत

तेजस्विनावधीतमस्तु ही इस गुरुकुल का नारा है।
शाकुम्भरी मातु ने देकर अपना तेज सँवारा है।।
जहाँ शिवालिक की चोटी से शीतल मन्द समीर बहे,
गोरख - वाणी ऋषि-मुनियों की प्रेरक योगी - कथा कहे।
यमुना तट से गंगा जी तक सींचे पावन धरती को
नागदेव, सोलानी, हिंडन, रतमाऊ की धारा है।।
शाकुम्भरी मातु ने देकर अपना तेज सँवारा है।।
हरी-भरी उर्वर धरती पर उपजा ज्ञान और विज्ञान,
अर्जित कर सद्कर्म करें हम दिग् दिगन्त हो गौरव गान ।
शोध और चिन्तन से कर लें नयी खोज और आविष्कार,
ओजस्वी हों शिष्य जिन्हें गुरुओं ने सतत् निखारा है।।
शाकुम्भरी मातु ने देकर अपना तेज सँवारा है।।
विद्या का ये केन्द्र अनूठा देता दुनिया को संदेश
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सबका अपना है यह देश
विविध रंग की संस्कृतियों का मेल एकता सिखलाए
सिन्धु सभ्यता, आर्य सनातन, देवबन्द भी प्यारा है
शाकुम्भरी मातु ने देकर अपना तेज सँवारा है।।
तेजस्विनावधीतमस्तु ही इस गुरुकुल का नारा है।
शाकुम्भरी मातु ने देकर अपना तेज सँवारा है।।
- सत्यार्थमित्र